livelaw.in की रिपोर्ट
Madhya Pradesh High Court:
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार (15 मई) को आदेश दिया कि वह कर्नल सोफिया कुरैशी पर उनकी टिप्पणी के लिए दर्ज FIR में भारतीय जनता पार्टी (BJP) मंत्री कुंवर विजय शाह के खिलाफ पुलिस की जांच की निगरानी करेगा। अपनी इस टिप्पणी में उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी को "आतंकवादियों की बहन" कहा था। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामला निष्पक्ष रूप से हो। यह तब हुआ जब न्यायालय राज्य पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR की सामग्री से असंतुष्ट है। न्यायालय ने आगे कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए जांच की निगरानी करने के लिए बाध्य है कि पुलिस किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित हुए बिना मामले की निष्पक्ष जांच करे।
बुधवार को हाईकोर्ट ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को राज्य के BJP मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया था, क्योंकि मंत्री की टिप्पणी पर गंभीर आपत्ति जताते हुए उन्होंने इसे "अपमानजनक", "खतरनाक" और "गटर की भाषा" बताया था - न केवल संबंधित अधिकारी को लक्षित करते हुए, बल्कि समग्र रूप से सशस्त्र बलों को बदनाम करते हुए। इसने आगे कहा कि प्रथम दृष्टया, भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) के तहत मंत्री के खिलाफ अपराध बनता है।
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा था:
"इस न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 14-5-2025 के आदेश के अनुसार, राज्य को मंत्री विजय शाह के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश देते हुए राज्य ने अनुपालन किया है और FIR दर्ज की है। अपराध BNS की धारा 152, 196(1)(बी),197(1)(सी) के तहत है। इस न्यायालय ने FIR के पैरा 12 की जांच की है, जिसमें अपराधी के कृत्य से अपराध के तत्वों को जोड़कर कानून बनाना आवश्यक है। FIR संक्षिप्त है। हालांकि, FIR का संक्षिप्त होना समस्या नहीं है। FIR को पूरी तरह से देखने पर संदिग्ध के कार्यों का एक भी उल्लेख नहीं है, जो उसके खिलाफ दर्ज किए गए अपराधों के तत्वों को संतुष्ट करता हो।"
खंडपीठ ने आगे कहा, "पैरा 12 का क्रियाशील भाग न्यायालय के आदेश का पुनरुत्पादन मात्र है तथा इसमें आदेश के पिछले भाग की झलक तक नहीं है, जो संदिग्ध की कार्रवाई को निर्धारित करता है। साथ ही यह बताता है कि वे किस प्रकार उपर्युक्त प्रत्येक धारा के अंतर्गत अपराध का गठन करते हैं। FIR रद्द की जा सकती है, जहां पैरा 12 की सामग्री है, जो अभियुक्त/संदिग्ध की कार्रवाई का विवरण प्रदान करती है। विशेष पैरा में पुनरुत्पादित नहीं की गई है। यह FIR इस तरह से दर्ज की गई ताकि यदि इसे पूर्ववर्ती CrPC की धारा 482 के अंतर्गत चुनौती दी जाती है तो इसे रद्द किया जा सकता है, क्योंकि इसमें भौतिक विवरण की कमी है। हालांकि यह सुनिश्चित करने के लिए कि उक्त छल-कपट न हो, यह न्यायालय निर्देश देता है कि 14-5-2025 का संपूर्ण आदेश FIR के पैरा 12 के भाग के रूप में पढ़ा जाएगा। मामले की प्रकृति तथा जिस तरह से FIR दर्ज की गई है, उसे देखते हुए, जो इस न्यायालय में विश्वास उत्पन्न नहीं करता...परिस्थितियों में न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि वह जांच एजेंसी की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किए बिना जांच की निगरानी करे, लेकिन केवल इस सीमा तक ही। यह निगरानी करना कि यह किसी बाहरी दबाव या निर्देश से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार निष्पक्ष रूप से कार्य करता है। छुट्टी के तुरंत बाद सूची में शामिल करें।"
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के निर्देश के कुछ ही घंटों बाद राज्य पुलिस ने शाह के खिलाफ BNS धारा 152, 196(1)(बी) और 197(1)(सी) के तहत FIR दर्ज की। BNS की धारा 152, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है, किसी भी ऐसे कृत्य को अपराध मानती है, जो अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता हो या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को बढ़ावा देता हो या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता हो।
दूसरी ओर, BNS की धारा 196 (1) (बी) उन कृत्यों से संबंधित है, जो विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सद्भाव के रखरखाव के लिए हानिकारक हैं और जो सार्वजनिक शांति को बाधित करते हैं या बाधित करने की संभावना रखते हैं। इसके अलावा, BNS की धारा 197 (1) (सी) राष्ट्रीय एकता के खिलाफ कृत्यों से संबंधित है। 15 मई को सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया कि पिछले आदेश का पालन किया गया।
FIR का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, "मुझे यकीन है कि आपने इसे पढ़ा होगा। इसे इस तरह से तैयार किया गया कि इसे रद्द किया जा सकता है। इसमें क्या तत्व हैं? इसे किसने तैयार किया? इसकी सामग्री FIR में होनी चाहिए। अगर कोर्ट का आदेश संलग्न है तो क्या इसे FIR के हिस्से के रूप में पढ़ा जा सकता है?" राज्य की ओर से पेश एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने कहा, "हम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करेंगे। मेरी विनम्र प्रार्थना है कि माननीय कोर्ट यह न समझे कि हम कोई ढाल प्रदान कर रहे हैं। हमारी मंशा पर संदेह न किया जाए।" बता दें, BJP मंत्री विजय अपने खिलाफ FIR दर्ज करने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं।