डॉ. बीएन सिंह
जबतक नीतीश कुमार हैं तेजस्वी यादव कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते । हालांकि तेजस्वी स्थापित हो चुके हैं उनको स्थापित करने में भी नीतीश का बड़ा हाथ है। याद करिये जब लालू यादव मात्र 4 सीट पर बिहार मे आ गये थे , तब लालू नीतीश के साथ मिल गये ,तब जाकर 80 सीट पाये और जिंदा हुये , समझौते की शर्त के अनुसार लालू यादव से कम सीट पाने पर भी नीतीश को मु. मंत्री बनाना पड़ा, लालू पुत्र मोह में अँधे होकर नीतीश को परेशान करने लगे। नीतीश ने एक को कैबिनेट मंत्री तथा दूसरे को उप मुख्य मंत्री बनाया ,जबकि दोनों चपरासी बनने की योग्यता नहीं रखते रहे।
लालू यादव नीतीश को हटाकर तेजस्वी को मु.मंत्री बनाने का ख़्वाब देखने लगे। परिणाम नीतीश ने उनके सपने को चूर चूर कर दिया। दुबारा लालू फिर मिले और अपनी आदत से बाज नहीं आये। नीतीश को ज़लील होकर बीजेपी के साथ जाना पड़ा । लालू यादव अपना ख़्वाब लेकर आज भी जिंदा हैं , लेकिन उनको लग रहा है कि मु.मंत्री की की कुर्सी अब बहुत पास लगती है लेकिन वास्तविकता में आज भी बहुत दूर है । कल तक कांग्रेस को बंधुवा समझते रहे, यहां तक की समझौते की कांग्रेस के टिकट वही तय करते रहे होते कि कौन कहा से लड़ेगा। लेकिन अब राहुल गांधी का अवतरण सब बदल दिया है, वोटर अधिकार यात्रा ने कांग्रेस जनों में ऊर्जा का संचार कर दिया है। अब कांग्रेस लालू की कृपा पर नही रह गयी है। यह भी लालू यादव की परेशानी है बन गयी है। राहुल को कांग्रेस को खड़ा करना है और लालू को तेजस्वी को मु.मंत्री बनाना है। कोई आश्चर्य नहीं चुनाव बाद या पहले लालू पुन: नीतीश की शरण में जा सकते हैं?
लालू यादव मन से क्या कांग्रेस को मजबूत होना पसंद कर सकते हैं? क्यूंकि कांग्रेस को मजबूत होने का मतलब है लालू- नीतीश का कमजोर होना। बीजेपी के वोट पर राहुल का बहुत जयादा असर नहीं होगा। लालू - नीतीश के बीच मे पुरानी अंडरस्टैंडिंग है या तो मैं , नहीं तो तुम। मेरी समझ से लालू कांग्रेस को मजबूत होने से नीतीश को पुन: एक बार मु.मंत्री बनने देना पसंद करेंगे। नीतीश का पैर कब्र में है। कब तक रहेंगे? उसके बाद तेजस्वी को मु.मंत्री और नीतीश पुत्र को उप मु.मंत्री बनाकर बिहार पर कब्जा कर लेंगे। बीजेपी/ कांग्रेस दोनों से मुक्ति ... कल क्या होगा पता नहीं ?
वर्तमान मे देश में नीतीश कुमार की बहुत चर्चा हैं, बीजेपी समर्थित सवर्ण और लालू समर्थित पिछड़े भी उनको पलटू चाचा कहकर ट्रोल करने में सबसे आगे हैं। नीतीश लालू को जानना है तो 90 के दशक में चलते हैं । लालू- नीतीश दोनों जे पी आंदोलन की पैदाईश हैं । दोनों दोस्त रहे और आज भी दोस्ती है लेकिन मरचा - गुड़ की तरह। कभी दोनों की थाली में कभी मरचा की , कभी गुड़ की मात्रा घटती बढ़ती रहती है। सबसे बड़ी दोनों की खूबी है कि आपसी वार्ता कभी दोनों ने बंद नहीं की। दोनों एक दूसरे से मिलते हैं , बिछड़ते है लेकिन बिहार की कुर्सी तीसरे को न जाय ,इसका बराबर खयाल रखते हैं। जब दोनों में कोई कमजोर होता है तो एक दूसरे की मदद लेने में नैतिकता कभी बाधा नहीं रही। लालू शुूरू से ही कहते रहे हैं कि नीतीश भयवा के पेट में दाँत है, नीतीश कभी इस बात का बुरा नहीं मानते। लालू को पहली बार 1990 में मु. मंत्री बनाने में नीतीश का बहुत बड़ा हाथ रहा। बिहार में एक से एक बढ़कर बाहरी नेता जार्ज, शरद जैसे लोग आये लेकिन दोनों ने मिलकर जार्ज - शरद को पलिहर का बानर बनने पर मजबूर कर दिया, दोनों को अस्तित्व की रक्षा के लिये बीजेपी की शरण मे जाना पड़ा। गांधी का नाम रटने वाले लोहिया ,जेपी, जार्ज, शरद यादव इत्यादि सबको गांधी के हत्यारों के गोंद में बैठना पड़ा। लालू - नीतीश दोनों ने मिलकर रामविलास पासवान को मरते दम तक मु. मंत्री की कुर्सी तक नहीं फटकने दिया।
जब लालू से नीतीश अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े तो नीतीश मात्र 8 सीट पाये, जिसमें 3 रातोंरात लालू के खेमें मे लौट गये। बीजेपी ने नीतीश पर दाव लगाया , राबड़ी देवी के बाद नीतीश के पिछवाड़े बीजेपी के समर्थन से हल्दी लग गयी। फिर तो नीतीश पिछे मुड़कर नही देखे।
लालू कमजोर हुये , बिहार में मात्र 4 सीट पाये , तब वक्त पर नीतीश से हाथ मिला लिये। ये वह समय था जब नीतीश ने मोदी के गुजरात से दी सहयोग राशि को लौटा कर , मोदी को अपने घर पर दिया दावत रद कर दी। लालू ने विधायक ज्यादा होने पर भी समझौते के अनुसार नीतीश को मु. मंत्री बनाया। अपने बड़े बेटे को मंत्री तथा छोटे तेजस्वी को उप मु. मंत्री बनाया। नीतीश को लालू यादव अर्दब में रखना शुरू किये , तब नीतीश बिदक गये । नीतीश अर्दब में आने वाले न कल थे ,न आज हैं।
तेजस्वी बाबू के लड़कपन और महत्वाकांछा के चलते लालू यादव पहली बार तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिये साजिश करने लगे तब सुशासन बाबू लालू से बिदककर बीजेपी की गोंद में चले गये।
फिर वक्त आया , साथ आये , इस बार भी लालू यादव वही साजिश शुरू किए तो नातीश कुमार पुन: बिदक गए।इधर सुशासन बाबू बिहार के विभिन्न क्षेत्र में विकास में लगे थे। उधर रोज लालू यादव कांग्रेस से मिलकर तेजस्वी को मु. मंत्री बनाने में लगे रहे। कांग्रेस लालू के कंधे पर बंदूक रखकर नीतीश को इंडिया गठबंधन में कमजोर करने लगी।
सुशासन बाबू के साथ जनता के बीच तेजस्वी की अच्छी पहचान बन रही थी मात्र एक साल बाद बिहार में चुनाव होना था मगर अगला चुनाव तेजस्वी मुख्यमंत्री रहते कराना चाहते थे।
जब लालू यादव को लगने लगा कि इंडिया सुशासन बाबू को PM प्रत्याशी नहीं बनाएगी तो किसी बहाने से नीतीश से चुनाव पहले सत्ता छीनने की साजिश करने लगे । जो अब पर्दाफाश हो रहा है । लालू यादव को धैर्य नहीं रहा। 73 साल की उम्र हो गयी सुशासन बाबू की, अब कितने दिन तक बिहार सम्हाल पाएंगे,अगर दोनों साथ रहते तो इस उम्र में कम से कम पिछड़ों की ताकत तो मजबूत रहती बिहार में। दोनों साथ रहते तो बीजेपी का खाता खुलना मुश्किल हो जाता। नीतीश का बयान वायरल किया जाता है कि , " मै कभी भी बीजेपी में नहीं जाऊँगा" , दूसरी तरफ शाह का भी बयान , " नीतीश के लिये बीजेपी का दरवाजा सदैव के लिय बंद "। इसके बाद भी नीतीश और शाह दोनों बयान से बदले। यह किन परिस्थितियों में हुआ होगा? आप सोच सकते हैं? बीजेपी को अपने तीन - तीन एजेंसियों के सर्वेक्षण मे पता चल गया था कि नीतीश के न रहते बीजेपी की 14 लोकसभा मे जमानत जब्त हो जायेगी। तभी लालू ने मौका दे दिया, पुत्र को मु.मंत्री बनाने के लोभ के कारण। नीतीश - शाह दोनों ने बयान बदल दिया , नीतीश पुन: बीजेपी की गोंद में जाकर पिछड़ों की ताकत को कमजोर कर दिया । नीतीश सामने से दोषी दिखाई दे रहें हैं मेरी समझ से लालू कम दोषी नहीं हैं। तेजस्वी का बड़बोलापन कि , " लड़ाई नीतीश कुमार जी शुरू किये हैं , अंत हम करेंगे " । जनता , मिडिया का एक वर्ग जो मोदी / बीजेपी विरोधी है , नमक मिर्च लगा कर गायन करने लगा। अफवाहों का बाजार गरम किया जाने लगा, कोई कहता जे डी यू के विधायक टूट रहे हैं , कोई कहता जेडीयू के विधायक गायब हो गये हैं , इत्यादि- इत्यादि। कोई चैनल कहता कि नीतीश कुमार इस्तीफा देकर विधान सभा भंग करके चुनाव करायेंगे। तमाम उलूल- जुलूल की अफ़वाहें। क्या हुआ? 129 विधायक फ्लोर पर, बहिष्कार का नाटक करना पड़ा ।
युवा नेता अभी मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे ही नहीं कि विधायकों के खरीद फरोख्त मामले में बुरे फंस गये । विधायक खरीद रिश्वत कांड में एक कि गिरफ्तारी हो चुकी थी, कई लिप्त बिचौलिए की होने वाली थी ।
जब पता है कि केंद्र में हमारे दुश्मन की सरकार है तो विधायक रिश्वत कांड की ऊब क्या थी भविष्य के बिहार के नेता तो अब आप बन ही चुके थे।
अब जब आप पर सोरेन की तरह कारवाई हो जाएगी तो निश्चित मानिए कि कांग्रेस भी तमाशा देखेगी।
क्योंकि बड़ी पार्टी में तो समझौता है तुम दक्षिण भारत में पिछड़े समर्थक पार्टी को निगलो हम उत्तर में पिछड़े विरोधी को निगलते हैं।
आप के इस भितरघात की स्थिति में तो पिछड़े आरक्षण वृद्धि वाले जनता दल यू को तो अस्तित्व रक्षा हेतु सरकारी पार्टी के शरण में जाना ही था और चले गये, इसमे आप सिर्फ नीतीश कुमार को पल्टू चाचा कहकर अपनी मूर्खता को नहीं छिपा पायेंगे।
सुशासन बाबू से तो गृह विभाग छीनना ही चाहती है भाजपा आपकी ताकत को तहस नहस करने को, मगर अभी भी नीतीश कुमार जी इस पक्ष में नहीं हैं।
आपके पिताश्री जी (जो 10 मार्च 1990 ई को "नीतीश फार्मूला"से मुख्यमंत्री बन पाए थे) की इच्छा। हम लोगों की तो इच्छा यहीं है कि मामा द्वय के चक्कर में मत रहें जिन्हें फिर सक्रिय मदद आप ले रहे थे। मिथलेश जी का आकलन कि लालू यादव , नीतीश से कम दोषी नहीं । नीतीश के साथ आने पर नयी पीढ़ी लालू यादव के जंगल राज को भूलकर तेजस्वी को स्वीकार करने लगी थी, जो लालू ने पुत्र मोह मे सब गुड़- गोबर कर दिया। ये जो बिहार मे वोटर अधिकार यात्रा मे भीड़ जुट रही थी न वह राहुल गांधी की भीड़ थी, लालू को फिर भ्रम हो गया है कि भीड़ राजद के लिये है। यहीं भ्रम सीट समझौते में बाधा है। लालू का पुत्र मोह बिहार की सबसे बड़ी समस्या है। धृतराष्ट्र के पुत्र मोह का परिणाम सबको पता है। शहाबुद्दीन जैसे अपराधी के परिवार से मोह भी नाश का कारण है।
तेजस्वी में मु.मंत्री बनने का क्या मेरिट है? क्या योग्यता है? सिर्फ लालू यादव के पुत्र होने के अलावा? नीतीश और तेजस्वी में क्या समानता है? नीतीश अपनी योग्यता के बल पर राजनीति में आये हैं, क्या तेजस्वी भी अपनी योग्यता के बल पर आये हैं? अगर लालू यादव के पुत्र नहीं होते तो क्या चपरासी भी बन सकते थे? नीतीश कुमार नेतरहाट से निकल कर पटना इंजीनियरिंग कालेज से बी.टेक. की डीग्री पाये। तेजस्वी मु.मंत्री के बेटा होकर 9 पास नहीं कर पाये और चाहते हैं कि बिहार उनको सौंप दिया जाय ,क्यूंकि वे लालू यादव के अनपढ़ बेटा हैं। लालू यादव तो मु.मंत्री बनने के पहले तो संघर्ष किये रहे , तेजस्वी का संघर्ष क्या है? बिहार की जनता लालू यादव का जंगल राज भूल गयी है क्या?
बिहार की जनता को तय करना है . इंतजार करिये....बाढ़े पूत पिता के धर्मे। एक बात और याद रखियेगा , बीजेपी को पता है कि अब इस बिहार में कोई सवर्ण मु.मंत्री नहीं बन सकता है , तभी वह पिछड़ों के बीच के कूड़ा- करकट को साफ करके सम्राट चौधरी को आगे लायी थी, जो चिल्लाकर कहता था जबतक नीतीश को गद्दी से उतार नहीं दूंगा तब तक पगड़ी नहीं उतारूंगा। नीतीश ने उसकी पगड़ी को.... डाल दिया। अब तो पता चला है कि उसके पास भी डी.लिट. की विदेशी डिग्री है। जिस संस्थान की डिग्री है व संस्था जमीन पर है ही नहीं। जबकि वह कक्षा 7 भी पास नही है।. भविष्य की लड़ाई तेजस्वी और सम्राट के बीच हो सकती है। यही बिहार का भविष्य हैं. ..
बाकी बिहार के लोग जाने..फिलहाल 10 हजार महिलाओं के खाते में आ रहा है...लोभी लोकतंत्र की रक्षा करेंगे...