
: एक इंजीनियर हर साल कर रहा नई शादी
Sat, Sep 21, 2024
पांच बीवियों को रखे हुए है एक सॉप्टवेयर इंजीनियर
-मध्य प्रदेश के ग्वालियर का है मामला
-पहली पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने शुरू की जांच
ग्वालियर।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ऐसा भी है, जो एक दो नहीं बल्कि पांच-पांच बीवियां रखे हुए है। इंजीनियर की पहली पत्नी होने का दावा करने वाली एक महिला ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) से इस संबंध में शिकायत की है। प्रभारी एसपी से न्याय की गुहार लगाते हुए महिला ने कहा कि पति काम का बहाना बनाकर कई दिनों तक घर से बाहर रहता है। जब उसने पड़ताल की तो हकीकत सामने आई। इतना ही नहीं पीड़िता का आरोप है कि आरोपी पति अब विदेश भागने की फिराक में है।
महिला की 13 मई 2018 को हुई थी शादी
ग्वालियर में एसपी कार्यालय में शिकायत लेकर पहुंची एक महिला ने बताया कि उसकी शादी 13 मई 2018 को मुरार तिकोनिया में रहने वाले रूस्तम सिंह से हुई थी। पीड़िता के अनुसार, उसका पति रूस्तम सिंह एक विदेशी कंपनी में सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन इंजीनियर है जो शादी के बाद से ही लगातार काम का बहाना बनाकर कई दिनों तक घर नहीं आता था। उसे शक हुआ तो जांच में पता चला कि उसके पति ने पांच शादियां की हैं। इतना ही नहीं ये सब पति के परिजन भी जानते हैं।
सभी पत्नियों को इस तरह दे रहा धोखा
महिला का आरोप है कि पति के परिजन खुद बेटे को शिक्षित बताकर उसकी अलग-अलग जगह शादी कराई है। पीड़िता का आरोप है कि आरोपी पति रुस्तम सिंह इसी तरह से काम का बहाना बनाकर हर पत्नी को धोखा दे रहा है। पीड़िता ने प्रभारी एसपी राकेश कुमार से न्याय की गुहार लगाई है।
2022 में महिला ने कोर्ट में किया था केस
पीड़िता ने बताया है कि उसने साल 2022 में पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया था, जो कोर्ट में विचाराधीन है। महिला का आरोप है कि पति विदेशी कंपनी में ही काम करता है। इसलिए अब विदेश भागने की फिराक में है। डीएसपी महिला अपराध किरण अहिरवार ने पीड़िता को भरोसा दिलाया है कि जांच के बाद आरोपी के खिलाफ विधि संगत कार्रवाई की जाएगी।

: एमपी के राजगढ़ में पत्रकार सलमान अली की हत्या
Wed, Sep 18, 2024
एचपीसीएमएफ ने मध्य प्रदेश के राजगढ़ में पत्रकार सलमान अली की हत्या की निंदा की
-तीन हमलावरों ने सलमान अली की कनपटी से पिस्तौल सटाकर मारी गोली
राजगढ़, मध्य प्रदेश।
मध्य प्रदेश के राजगढ़ में अज्ञात हमलावरों द्वारा एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या किए जाने का मामला सामने आया है। मामला राजगढ़ जिले के सारंगपुर नगर का है।बताया जा रहा है कि मंगलवार देर शाम सारंगपुर नगर के अस्पताल रोड स्थित कंचन मेडिकल स्टोर के पास बाइक सवार तीन अज्ञात बदमाशों ने स्थानीय पत्रकार सलमान अली (35) की कनपटी में सटाकर गोली मारी और फरार हो गए।घायल अवस्था में सलमान को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सलमान दस्तक न्यूज नामक प्लेटफार्म के लिए काम कर रहे थे।थाना प्रभारी सारंगपुर आकंशा शर्मा ने बताया कि स्थानीय पत्रकार सलमान अली पर तीन अज्ञात हमलावरों ने गोलियां चलाईं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। फिलहाल, मामले की जांच की जा रही है, जिसके पश्चात आगामी कार्रवाई की जाएगी.प्रेस क्लब एण्ड मीडिया फाउंडेशन (एचपीसीएमएफ) स्थानीय पत्रकार सलमान अली की नृशंस हत्या की निंदा करता है, जिनकी 17 सितंबर 2024 की शाम को राजगढ़ जिले के सारंगपुर कस्बे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मोटरसाइकिल पर सवार तीन अज्ञात हमलावरों द्वारा किया गया यह जघन्य कृत्य भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक काला और भयावह दिन है।सलमान अली जैसे पत्रकार हमारे लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में काम करते हैं, जो अक्सर बहुत बड़ा व्यक्तिगत जोखिम उठाकर सच्चाई को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। इस मामले में वह जोखिम दुखद रूप से घातक हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, हमलावरों ने अस्पताल रोड पर कंचन मेडिकल के पास सलमान अली को निशाना बनाया और उन्हें निर्मम तरीके से गोली मार दी। आस-पास के लोगों द्वारा उसे अस्पताल ले जाने के तत्काल प्रयासों के बावजूद, सलमान अली ने दम तोड़ दिया और उसे मृत घोषित कर दिया गया।इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि सलमान अली पर यह पहला हमला नहीं था। वह पहले भी धारदार हथियारों से किए गए हमले में बच चुका था, जिससे उस पर की गई हिंसा के पैटर्न को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा हो गई थीं। उसकी हत्या कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि देश भर में पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती धमकियों और हिंसा की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है।
तत्काल कार्रवाई और न्याय की मांग
एचपीसीएमएफ मांग करता है कि मध्य प्रदेश सरकार और सारंगपुर पुलिस इस अपराध के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए त्वरित, गहन और पारदर्शी कार्रवाई करे। यह महत्वपूर्ण है कि इस हत्या को एक आंकड़े तक सीमित न रखा जाए या उदासीनता से निपटा न जाए। जांच अधिकारियों को जिम्मेदार लोगों की पहचान करने और उन पर मुकदमा चलाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।इसके अलावा, हम राज्य और केंद्र दोनों अधिकारियों से पत्रकारों, खासकर छोटे शहरों और जिलों से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के सामने बढ़ते खतरों को पहचानने और उनका समाधान करने का आह्वान करते हैं, जो अक्सर सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं। यह हत्या न केवल प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर करती है, बल्कि सत्ता के सामने सच बोलने की हिम्मत रखने वाले अन्य पत्रकारों को भी खतरनाक संकेत देती है।
एक राष्ट्रीय चिंता: पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
इस दुखद घटना से यह स्पष्ट है कि सलमान अली को पहले भी निशाना बनाया गया था। इससे महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं: देश में पहले कितने अन्य पत्रकारों पर हमला हुआ है? उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?इसके मद्देनजर, एचपीसीएमएफ तत्काल राष्ट्रव्यापी आकलन की मांग करता है। प्रशासन को उन सभी पत्रकारों की एक व्यापक सूची तैयार करनी चाहिए, जिन पर पहले हमला हुआ है और उनकी सुरक्षा के लिए तुरंत सख्त सुरक्षा उपाय लागू करने चाहिए। इन पत्रकारों को, जो पहले ही धमकियों या हिंसा का सामना कर चुके हैं, आगे और नुकसान के लिए असुरक्षित नहीं छोड़ा जाना चाहिए।इसके अलावा, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) को इस मुद्दे का तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और सभी राज्यों से प्रत्येक क्षेत्र में पत्रकारों पर हमले की संख्या के बारे में जानकारी मांगनी चाहिए। पीसीआई को यह भी आकलन करना चाहिए कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। ऐसा करके, हम आगे की चूक या लापरवाही को रोक सकते हैं और सुनिश्चित कर सकते हैं कि इन बहादुर व्यक्तियों को वह सुरक्षा मिले जिसके वे हकदार हैं।
प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बड़ा खतरा
यह घटना भारत में पत्रकारों के सामने बढ़ते खतरों की एक गंभीर याद दिलाती है, जिसे 2024 प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में से 159वें स्थान पर रखा गया है। पत्रकार, विशेष रूप से छोटे क्षेत्रों में काम करने वाले, बढ़ती शत्रुता, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करते हैं। इस तरह के कृत्यों का भयावह प्रभाव उन आवाज़ों को दबा देता है जो हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।धमकियों और हिंसा का सामना करते हुए सच्चाई का पीछा करने के लिए आवश्यक साहस को कम करके नहीं आंका जा सकता। सलमान अली की मौत पत्रकारिता समुदाय के लिए एक गहरी क्षति है और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर झटका है। उनकी हत्या पत्रकारों के लिए बेहतर सुरक्षा और उनके आवश्यक कार्य को करने के लिए सुरक्षित वातावरण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।एचपीसीएमएफ सलमान अली के परिवार, सहकर्मियों और व्यापक पत्रकारिता समुदाय के साथ एकजुटता में खड़ा है। हम सरकार से पत्रकारों के लिए तुरंत मजबूत सुरक्षा लागू करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता को एक मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा जाए, न कि अनदेखा किए जाने वाले आदर्शवादी विचार के रूप में।सलमान अली की हत्या सभी के लिए एक चेतावनी के रूप में काम करनी चाहिए। अगर पत्रकारों को चुप कराना जारी रखा गया तो हमारे लोकतंत्र और समाज को बहुत बड़ा नुकसान होगा। हम सलमान अली और उन सभी पत्रकारों के लिए न्याय की मांग दोहराते हैं जिनकी जान सिर्फ़ अपना काम करने की वजह से खतरे में पड़ जाती है।

: एमपी के मुख्यमंत्री मोहन की चली तो क्या होगा मोदी-योगी की नागरिकता का?
Sat, Sep 7, 2024
राम कृष्ण कहना होगा अब भारत की नागरिकता की नयी शर्त
-बादल सरोज
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ताल ठोंक कर एलान किया है कि अब भारत देश में सिर्फ और केवल वे ही लोग रह सकेंगे जो रामकृष्ण बोलेंगे। उनके इस कथन की बाकी पैमानों से पड़ताल बाद की बात है पहले तो यही कि जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठनों में रहते हुए वे इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं, जिस भाजपा के विधायक के रूप में वे मुख्यमंत्री बने हैं खुद उनके ही हिसाब से यह कुछ ज्यादा ही ऊंची पिनक में कही गयी बेतुकी बात है। बाकियों का क्या होगा यह बाकी जानें फिलहाल तो उनके शीर्षस्थ अवतारपुरुष की नागरिकता ही संकट में पड़ने वाली है जिन्होंने लोकसभा चुनाव नतीजों के आने के बाद अपने चौथाई सदी पुराने जय श्रीराम के उदघोष को त्याग कर जय जगन्नाथ का जयकारा लगाया था।यूं संकट में तो पहले से ही आतंरिक संकट में घिरे योगी आदित्यनाथ की नागरिकता भी पड़ने वाली है जिनका नाथ सम्प्रदाय कुछ ज्यादा ही अलग विचार रखता है। यह राजनाथ सिंह के हाथों आयी मोदी और शाह की पर्ची से निकलकर बिना नया कुर्ता पाजामा सिलवाये ही अचानक मुख्यमंत्री बन गए मोहन जी को हुए भरम का मामला नहीं है, यह प्यादे से वजीर सो भी वजीरेआला होकर उपजा व्यामोह का मनोविकार भी नहीं है कि वे अचानक खुद को जम्बूद्वीपे भारतखंडे के सर्वशक्तिमान नियंता समझने लगे हैं ; स्वयं को सबसे ऊपर, इतने ऊपर मान बैठे हैं कि उनके ऊपर न क़ानून है, न विधान, ना ही संविधान।पहले उनके मौजूदा रूप-मुख्यमंत्री-को ही ले लें; जिस संविधान के तहत वे जनप्रतिनिधि बने हैं, और “मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा ….. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा, मैं ….. सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार कार्य करूंगा’’ की शपथ लेकर जिस संविधान को लागू करने का वादा करके वे मुख्यमंत्री बने हैं उस भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को संरक्षित किया गया है।इसमें प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म को स्वीकार करने या न करने, अनुसरण एवं प्रचार करने के लिए स्वतंत्र होगा। इतना ही नहीं, इसके अलावा और इस के साथ भारत का संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि “राज्य किसी भी धर्म विशेष का पक्ष नहीं लेगा न उसे कोई विशेष सुविधा प्रदान करेगा।“ इस तरह प्रथम दृष्टि में ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका यह कथन भारत के नागरिक के नाते, भारत के संविधान के तहत निर्वाचित जनप्रतिनिधि तथा संविधान की शपथ लेकर पदासीन हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाते एक सर्वथा अनुचित, असंवैधानिक कथन है।इस तरह यह एक निर्विवाद तथ्य है कि मुख्यमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति का यह अनुचित और अनावश्यक बयान भारत के स्वतंत्रता संग्राम की भावना और संविधान के मूल तत्वों तथा ढाँचे को नुक्सान और आघात पहुंचाने वाला है और जिस पद पर वे विराजमान हैं उसकी भी अवमानना और अवज्ञा करने वाला है। सामान्यतः ऐसे बोलवचन दंडात्मक कार्यवाही के लिए काफी होते हैं, जिस पद पर बैठकर वे इन्हें बोल रहे हैं उस पद से मुक्त किये जाने की उचित कार्यवाही के लिए समुचित आधार होते हैं; मगर जब यह एक विशेष योजना के तहत कहा जा रहा हो तो ऐसी कार्यवाहियों की उम्मीद करना ज्यादा ही उम्मीद करना होगा।उनकी वैचारिक परवरिश जिस कुटुंब में हुई है उसके विचार और धारणाओं को देखते हुए मोहन यादव द्वारा भारत के संविधान को अंगूठा दिखाने और मुंह चिढ़ने का यह काम अचरज की बात नहीं है। आधुनिक भारत की अवधारणा और संविधान में वर्णित समता, समानता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे और वैज्ञानिक रुझान विकसित करने जैसे इसके सभी लक्ष्यों से इस कुटुम्ब-आरएसएस-की कभी सहमति नहीं रही। सही बात तो यह है कि ये हमेशा इसके विरुद्ध ही रहे। अपने पूरे इतिहास में आर एस एस मौजूदा संविधान के निषेध की राय पर कायम रहा, हाल के वर्षों में सत्ता के सभी अंगों पर लगभग वर्चस्व कायम करने के बाद तो जैसे उसे ध्वस्त करने के लिए हाथ मुंह धोकर ही पीछे पड़ गया है।स्वाभाविक भी है। पहले भी कई बार कहा जा चुका है,बार बार दोहराने में हर्ज नहीं कि भारत का संविधान एक ऐसा आधुनिक ग्रन्थ है जो स्वतन्त्रता संग्राम की भट्टी में तपकर निकला है, जो इस महान संघर्ष के दौरान भारत के अवाम में चली बहस का मोटा मोटा सार है। मोहन यादव का कुनबा आजादी की इस लड़ाई से न सिर्फ अलग रहा बल्कि उसने आजादी सहित उसके बाद के हर प्रतीक का जमकर विरोध तक किया। इस संविधान का धिक्कार तिरस्कार किया और उसकी जगह मनुस्मृति के आधार पर देश चलाने की मांग की।आज भी इस कुनबे का लक्ष्य यही है। दुरुस्त किये जाने योग्य अनेक कमियों के बावजूद भारत का संविधान एक ऐसा अनूठा दस्तावेज है जो इस देश की कई हजार वर्ष पुरानी अनेकता में एकता और हर तरह की विविधता का समावेश करता है और उसे भविष्य में भी अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रबंध करता है। अपनी कई सीमाओं के बावजूद इस संविधान की ही खूबी है जिसने 1947 में अनेक राजों में विभाजित इस भूखंड को एक देश भारत में न सिर्फ एकजुट किया बल्कि पिछली 77 वर्षों में उसकी इस एकजुटता को बनाए रखते हुए और अधिक मजबूत किया। इसलिए इस पर हमला दरअसल भारत की बुनियाद पर हमले से कम नहीं है। जिन पर संविधान की हिफाजत और उसे लागू करने का जिम्मा है खुद उन्ही के द्वारा ऐसा कहा जाना अतिरिक्त चिंता का विषय है।बयान को देखकर लगता है कि बयानवीर सिर्फ भारत के संविधान से ही अपरिचित नहीं है, वे इसके ही विरुद्ध नहीं है बल्कि भारत की कई हजार वर्ष पुरानी और वादे वादे जायते तत्वबोधः पर चलकर विकसित हुई समृद्ध धार्मिक एवं दार्शनिक परम्पराओं के बारे में भी कुछ नहीं जानते। सगुण और निर्गुण परम्परा का भी तो उनको भान तक नहीं है। जिस कथित हिन्दू धर्म के प्रतीकों को अपने क्षुद्र राजनीतिक इरादों से इस्तेमाल कर रहे हैं उस हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख धाराओं शाक्त, शैव और वैष्णव और उनके अंतर्गत आने वाली दर्जनों उपधाराओं और उनके बीच हुए तथा सदियों तक चले, आज भी जारी गलाकाट संघर्ष के बारे में उन्हें तनिक भी माहिती नहीं है।वे स्वयं उज्जैन से आते हैं जो महाकाल के नाम से भी जाना जाता है, जिसे केंद्र बनाकर संस्कृत साहित्य में श्रेष्ठ सृजन करने वाले कालिदास शिव के सर्वश्रेष्ठ अनुयायी माने जाते हैं; यह उज्जैन उस शैव परम्परा के प्राचीनतम केन्द्रों में से एक है जो किसी अवतारवाद में यकीन नहीं रखता। जो शिव के अलावा और किसी देवी, देवता, ईश्वर, भगवान् को नहीं मानता। उन्हें नहीं पता कि शैव और वैष्णव धाराओं के बीच संघर्ष उतना ही पुराना जितना बाद में आया वैष्णव धर्म-और इसके नज़ारे अभी भी कुम्भ के हरेक मेले में दिखते रहते हैं।प्राचीनतम कही जाने वाली और हिन्दू धार्मिक परम्पराओं में अत्यंत लोकप्रिय शाक्त धारा का तो लगता है उन्होंने नाम तक नहीं सुना। यह वह परम्परा है जिसके चिन्ह और प्रमाण तो वैदिक संस्कृत बोलने वाले आर्यों से भी कहीं अधिक प्राचीन हड़प्पा सभ्यता में भी मिलते हैं। शाक्त दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है जो सृष्टि और विश्व का नियंता और निर्माता किसी पुरुष ईश्वर को नहीं मानता, उत्पत्ति का कारण मातृतत्व को मानता है और इसलिए सिर्फ देवियों की पूजा आराधना करता है।इतने दूर जाने में यदि उन्हें मुश्किल लगती थी तो हाल के राममन्दिर प्रसंग से ही कुछ सीख लेते; मंदिर बनाने के लिए बनाई गयी समिति के प्रमुख चम्पत राय के बयान पर ही नजर डाल लेते जिन्होंने खुलेआम कहा था कि “अयोध्या धाम में जो राममन्दिर बन रहा है वह सिर्फ रामानंदी सम्प्रदाय का है, शैव, शाक्त और सन्यासियों का नहीं है।“ उन्होंने इन धाराओं को ही “हमारे मंदिर से दूर रहें” की चेतावनी नहीं दी बल्कि कृष्ण को एकमात्र आराध्य मानने वाले वल्लभाचार्य और निम्बार्क मतों को मानने वालों को भी चेताया था।इस सन्दर्भ के साथ जोड़कर देखें तो मोहन यादव का यह बयान धरती के इस हिस्से की विविध धार्मिक और दार्शनिक परम्पराओं-जैन, बौद्ध, द्रविड़, अनार्य, आर्यसमाज, ब्रह्मो समाज, आदिवासी आदि इत्यादि पर अभी विचार न भी करें तो- जिसे यह कुनबा हिन्दू धर्म कहता रहा है उसके खिलाफ है, उनका भी निषेध है। इस तरह के बयानों को उस क्रोनोलोजी के साथ देखना होगा जिसे इन मुख्यमंत्री के कुनबे ने अपना ग्रांड प्रोजेक्ट बनाया हुआ है। यह वह दुष्ट परियोजना है जो ब्राह्मणवादी धर्म की यातनापूर्ण जकड़न के खिलाफ हिन्दू परम्पराओं के भीतर पिछली कई सदियों में चले सुधारवादी आंदोलनों तथा राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद जैसे सुधारवादियों का भी नकार है। इस तरह कुल मिलाकर यह धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में ऐसी प्रतिक्रांति है जिसके बाद कुछ भी साबुत नहीं बचने वाला है।इसकी शुरुआत सावरकरी हिंदुत्व वाले हिन्दूराष्ट्र की बात से हुयी थी। पिछले 2-3 वर्षों में हिन्दू हट गया और उसकी जगह सनातन आ गया । आरएसएस जिस सनातन धर्म की स्थापना की बात करता है वह भारतीय परम्पराओं के इस पूरे विकास क्रम और इस तरह खुद हिन्दू धर्म का निषेध है। उनका सनातन धर्म शुद्ध अर्थों में मनुस्मृति, गौतम स्मृति और नारद संहिताओं जैसी गैर दार्शनिक और अधार्मिक किताबों में लिखी यंत्रणा पूर्ण समाज व्यवस्था और सती प्रथा जैसी बर्बरताओं की बहाली है और इस तरह कुछ हजार वर्षों के मंथन तथा संघर्षों के हासिल को छीनकर भारत को एक घुटन भरे बंद समाज में बदल देने की महा परियोजना है। स्वयं निजी जीवन में नास्तिक सावरकर और आरएसएस के गुरु कहे जाने वाले गोलवलकर सहित संघ के अनेक सरसंघचालक इसे लिखा-पढ़ी में कह चुके हैं।यह एक नए ही तरह के सामाजिक ढाँचे और उसके अनुकूल नए ही तरह के धर्म को गढने की बात है जिसका लक्ष्य एक बंद, यातनापूर्ण निजाम को कायम करना है जहां न किसी तरह का लोकतंत्र होगा, ना ही किसी मत को मानने या न मानने की स्वतंत्रता होगी, चारों तरफ सिर्फ अन्धेरा ही अन्धेरा होगा। यह देश ऐसे अन्धकार युग को देख चुका है, जब बुद्ध की वैचारिक आभा से व्यापी प्रश्नाकुलता को दबाकर वर्णाश्रम की बेड़ियाँ कसकर बाँध दी गयी थी, जब समाज को अलग अलग खांचों में बांटकर हाथ और दिमाग, श्रम और अध्ययन को एकदम एक दूसरे से अलग कर दिया गया था।इसकी कीमत सदियों को चुकानी पड़ी थी क्योंकि इस देश में शोषण के कारगर औजार के रूप में गढ़े गये वर्णाश्रमी ब्राह्मणवादी धर्म के द्वारा समाज पर थोपी गयी जड़ता के विरूद्ध उपजा अंतर्विरोध और दर्शन तथा धर्म की भाषा में उसकी अभिव्यक्ति तथा उसके खिलाफ हुआ संघर्ष ही था जो समय समय पर भारत में अलग अलग दार्शनिक परम्पराओं और उनके आधार पर नए नए धर्मों के अस्तित्व में आने का कारण बना।लोकायत की समृद्ध परम्परा के अलावा जैन और बौद्ध और सबसे ताजा सिख धर्म इसी ऐतिहासिक संघर्ष के परिणाम थे। इन सबने अपने अपने कालखण्ड में भारतीय समाज की जड़ता को तोड़ा, नतीजे में समाज ने आगे की तरफ प्रगति की। विज्ञान, गणित, कला, स्थापत्य, चिकित्सा विज्ञान, भाषा, व्याकरण, कृषि तथा व्यापार के क्षेत्रों में तेजी के साथ नयी खोजें, आविष्कार और अनुसंधान हुए। आठवीं नवमी सदी में पसरे अन्धकार ने इन सबको रोक दिया और जो परिणाम निकला वह इतिहास में दर्ज है।बड़ी मुश्किल से जिससे निजात पायी थी वही पतझड़ अब रोपा जा रहा है। यह सिर्फ वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ही नहीं है, वह तो है ही, मगर उससे भी आगे का मामला है। इसे इसके निहितार्थों से जोड़कर ही समग्रता में देखा और समझा जा सकता है।
(बादल सरोज लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसानसभा के संयुक्त सचिव हैं)