नब्ज पर हाथ : बिहार चुनाव में फीलगुड फैक्टर कितना काम आएगा?

अजीत द्विवेदी
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने 2004 का लोकसभा चुनाव ‘फीलगुड’ और ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे और नैरेटिव पर लड़ा था। चारों तरफ चमकते भारत की तस्वीर दिखाई जा रही थी। लेकिन उनका गठबंधन चुनाव हार गया था। उस समय लगा था कि इन नारों ने लोगों को आहत कर दिया क्योंकि जमीनी हकीकत नारों से उलट थी। हालांकि अब रेट्रोस्पेक्टिव तौर पर देखें तो ऐसा लगता है कि आज बहुत सी चीजें जो भारत में अच्छी दिख रही हैं, जिनमें सड़कों का जाल एक चीज है, उसकी नींव उसी समय पड़ी थी। बहरहाल, उस समय ‘फीलगुड’ का नारा फेल हो गया था।
उसके 20 साल बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ‘फीलगुड फैक्टर’ क्रिएट कर रही है। लोगों को कम्फर्ट का अहसास दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। 2047 तक भारत को विकसित बनाने के वादे के साथ साथ यह बताया जा रहा है कि सरकार लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए कितना कुछ कर रही है। चारों तरफ हरियाली दिखाने की कोशिश हो रही है। इस नैरेटिव की तात्कालिक परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव में होगी और उसके बाद पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुना में भी होगी।
सबसे पहले यह देखने की जरुरत है कि सरकार किन फैसलों से ‘फीलगुड फैक्टर’ क्रिएट कर रही है और उसका क्या असर हो सकता है? लोगों को अच्छा महसूस कराने का बड़ा फैसला जीएसटी सुधार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से 15 अगस्त के अपने भाषण में ऐलान किया कि इस बार दिवाली पर डबल दिवाली मनेगी। उसके बाद सरकारी सिस्टम का पहिया इतनी तेजी से घूमा कि प्रधानमंत्री की घोषणा के एक महीना पूरा होने से पहले ही जीएसटी की दरों को बदलने का फैसला हो गया।
जीएसटी के 12 और 28 फीसदी के दो स्लैब खत्म हो गए और 12 फीसदी टैक्स वाली 90 फीसदी चीजें पांच फीसदी के टैक्स स्लैब में आ गईं। यानी इनकी कीमतों में सात फीसदी तक की कमी आएगी। कई चीजों पर जीरो टैक्स कर दिया गया और बड़ी गाड़ियों के ऊपर भले 40 फीसदी टैक्स कर दिया गया है लेकिन उस पर लगने वाला सेस हटा दिया गया तो उनकी कीमत में भी 10 फीसदी तक की कमी आएगी। बीमा के प्रीमियम पर से तो सरकार ने 18 फीसदी टैक्स को जीरो कर दिया। अब देखना है कि कंपनियां इसका कितना लाभ आम लोगों तक ट्रांसफर करती हैं।
यह सचमुच बहुत बड़ा फैसला है। रोजमर्रा की जरुरत की चीजों पर टैक्स घटाना, बीमा के प्रीमियम को सस्ता बनाना, छोटी व बड़ी गाड़ियों पर टैक्स कटौती, सीमेंट की कीमतों में कमी जैसी कई चीजें हैं, जिनसे लोग निश्चित रूप से अच्छा महसूस कर रहे हैं। ऊपर से सरकार का प्रचार है। सरकार के प्रचार को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे अभी से पहले देश में कांग्रेस और राहुल गांधी की सरकार चल रही थी, जिन्होंने देश के लोगों पर बहुत सारा टैक्स लाद रखा था और अब 15 अगस्त 2025 को नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, जिन्होंने देश के लोगों को टैक्स की गुलामी से मुक्ति दिलाई है।
असलियत यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही जुलाई 2017 में आधी रात को संसद का सत्र बुला कर जीएसटी लागू किया था। जीसटी की जिन दरों में कटौती की गई वो सारी दरें मोदी सरकार ने ही लागू की थीं और राहुल गांधी आठ साल से कह रहे थे कि ये दरें बहुत ज्यादा हैं और जीएसटी की व्यवस्था बहुत जटिल है। वे बार बार टैक्स कटौती और इसकी व्यवस्था को सरल बनाने की मांग कर रहे थे। लेकिन सरकार का नैरेटिव ऐसा है, जैसे राहुल और कांग्रेस ने टैक्स लगाए थे और जीएसटी को जटिल बनाया था और अब नरेंद्र मोदी की सरकार टैक्स कम कर रही है और जीएसटी को सरल बना रही है!
जो हो देश में फीलगुड आया दिख रहा है। लोगों कीमतें कम होने के इंतजार में हैं। त्योहारों में खरीदारी की तैयारी हो रही है। बाजार की भी अपनी तैयारियां हैं। कीमतें कम होने से महंगाई घटेगी और महंगाई घटेगी तो भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करेगा, जिससे बाजार में मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। मांग बढ़ेगी तो विकास दर में भी तेजी आएगी। ध्यान रहे चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर का अनुमान साढ़े छह फीसदी का था लेकिन वास्तविक दर 7.8 फीसदी रही।
इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने पूरे साल की विकास दर का अनुमान साढ़े छह फीसदी से नहीं बढ़ाया क्योंकि उसको पता है कि अमेरिकी टैरिफ और भू राजनीतिक स्थितियों से आगे कुछ भी हो सकता है। सरकार सावधनी बरत रही है। उसकी उम्मीद इतनी है कि अगर अमेरिकी टैरिफ कम नहीं होता है तो उससे होने वाले नुकसान को जीएसटी में कटौती से बराबर किया जा सके। इतना भी हो गया तो बड़ी बात होगी। एक अनुमान अमेरिकी टैरिफ से 0.2 से 0.6 फीसदी नुकसान का है तो जीएसटी में कटौती से जीडीपी में 0.6 फीसदी की बढ़ोतरी का है।
बहरहाल, जीएसटी के अलावा इस बात से भी ‘फीलगुड फैक्टर’ क्रिएट किया गया है कि सरकार ने कर मुक्त आय की सीमा बढ़ा कर 12 लाख रुपए कर दी। निश्चित रूप से यह बहुत बड़ा फैसला था। आमतौर पर केंद्र सरकार के बजट में मध्य वर्ग की नजर इस बात पर रहती थी कि आयकर में क्या छूट मिलती है। केंद्र सरकार ने आय़कर छूट की सीमा बढ़ा कर 12 लाख रुपए कर दी है, जिससे नौकरी पेशा करोड़ों लोगों को फायदा हुआ है। यह प्रत्यक्ष कर में आजादी के बाद का सबसे बड़ा सुधार या सबसे बड़ी छूट थी तो जीएसटी में कटौती अप्रत्यक्ष कर में उसी साइज का सुधार है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर का यह सुधार निश्चित रूप से देश के लोगों को आर्थिक रूप से प्रभावित करेगा और मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित करेगा। इससे एक सकारात्मक धारणा का निर्माण होगा, जिसे राजनीतिक फायदे में बदला जा सकता है।
भाजपा को सबसे पहले इसे बिहार में ही राजनीतिक फायदे में बदलना है। वहां इन दो बड़े फैसलों को अलावा अलग ही ‘फीलगुड फैक्टर’ क्रिएट किया जा रहा है। बिहार के लोगों ने देश के बाकी हिस्सों की तरह अभी तक मुफ्त की चीजों का मजा नहीं चखा था क्योंकि नीतीश कुमार इसके खिलाफ रहते थे। अब भारतीय जनता पार्टी के असर में नीतीश सरकार ने पहली बार बिहार के लोगों को मुफ्त की चीजों का स्वाद चखाया है। राज्य में 125 यूनिट बिजली सभी के लिए फ्री हो गई है। इससे 60 फीसदी लोगों का बिजली बिल जीरो हो गया है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन, जिसमें वृद्धजन, दिव्यांगजन और विधवा महिलाएं शामिल हैं उसे चार सौ से बढ़ा कर 11 सौ रुपए कर दिया गया है।
पत्रकारों की पेंशन छह हजार से बढ़ा कर 15 हजार रुपए कर दी गई है। स्कूलों के पीटी टीचर और नाइट गार्ड्स का मानदेय दोगुना कर दिया गया है। आशा दीदी, ममता दीदी, जीविका दीदी आदि के मानदेय में भी बढ़ोतरी की गई है। और सबसे ऊपर सरकार ने देश के सभी 2.78 करोड़ घरों में एक महिला को एकमुश्त 10 हजार रुपए नकद देने का ऐलान किया है। यह रकम इसी महीने सबके खाते में आ जाएगी। सरकार 10 हजार रुपए डीपीआर यानी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने के लिए दे रही है। उसने महिलाओं से कहा है कि वे कोई कारोबार शुरू करने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट सरकार को दें और अगर सरकार को प्रोजेक्ट पसंद आया तो महिलाओं को दो लाख रुपए दिए जाएंगे। सो, सरकार ने जबरदस्त फीलगुड का माहौल बनाया है। इस माहौल में बिहार का विधानसभा चुनाव होगा। अगर इसके बाद भी मुकाबला नजदीकी होता है और विपक्षी पार्टियां एनडीए को टक्कर देती हैं तो यह स्थापित होगा कि पूरा देश जैसा सोचता है, बिहार उससे अलग सोचता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुफ्त की रेवड़ी ने हर राज्य में सत्तारूढ़ दल को जीत दिलाई है।
(लेखक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक नया इंडिया के संपादक समाचार हैं।)
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