बिहार की राजनीति : नीतीश कुमार का "भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस" बिहार की गरीब और श्रमजीवी जनता के लिए सबसे क्रूर मजाक

हेमंत कुमार झा
तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री थे। अतीत के किसी मामले को लेकर उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आदर्शवादी रुख अपनाया। सरकार गिर गई। तेजस्वी सरकार से बाहर हो गए।भाजपा के साथ फिर से मिल कर नीतीश जी मुख्यमंत्री बन गए और बने रहे। कहा गया कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने में कभी कोई कोताही नहीं बरतते। उन्होंने तेजस्वी पर उठ रहे सवालों से कोई समझौता नहीं किया।
आज नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शामिल कई लोगों पर सवाल उठ रहे हैं। प्रशांत किशोर सार्वजनिक रूप से कई तथ्य सामने ला रहे हैं। कुछ दस्तावेज भी दिखा रहे हैं। कई सौ करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
लेकिन, नीतीश कुमार चुप हैं।
अगर नरेंद्र मोदी का "अच्छे दिन" देश के लिए नई सदी का सबसे बड़ा शिगूफा साबित हुआ तो नीतीश कुमार का "भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस" बिहार की गरीब और श्रमजीवी जनता के लिए सबसे क्रूर मजाक साबित हुआ।
नीतीश राज में पटना में जमीन और फ्लैट्स की कीमतों में अकल्पनीय वृद्धि का सबसे बड़ा कारण सार्वजनिक सेवा में शामिल बहुत सारे लोगों का बेरोकटोक भ्रष्टाचार है। बिहार में फैशन है कि आप तब तक पैसे वाले नहीं माने जा सकते जब तक कि पटना में आपने जमीन या फ्लैट नहीं खरीदा। राज्य के किसी भी कोने में आपकी पोस्टिंग हो, किसी भी सुदूर गांव, कस्बे या शहर में आपका घर हो, लेकिन पटना में घर या जमीन नहीं ली तो पब्लिक फंड की अबाध और अविवेकी लूट से भी क्या हासिल किया? नतीजा यह है कि यहां इतनी कीमतें बढ़ीं कि आम लोगों और जरूरतमंदों के लिए पटना में जमीन या फ्लैट पहुंच से बाहर हो गए।
निगरानी विभाग नामक एक संस्था है जिसे शान से अंग्रेजी में विजिलेंस डिपार्टमेंट कहा जाता है। विजिलेंस कहने से थोड़ा भौकाल टाइप बनता है। तो, हम अक्सर वीडियो देखते हैं कि कोई दारोगा, कोई सीओ, कोई किरानी , कोई संविदा कर्मचारी, कोई कंपाउंडर आदि विजिलेंस कर्मियों के द्वारा धकियाया जाता जीप पर चढ़ाया जा रहा है। आरोप कि घूस लेता रंगे हाथों पकड़ा गया। "जीरो टॉलरेंस" वाले नीतीश राज में घूस? नहीं, विजिलेंस है न।
लेकिन, क्या यह विजिलेंस सिर्फ छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए है? मुझे कानून नहीं पता। बड़े राजनेताओं और अधिकारियों के लिए तो फिर कौन सा विभाग है?
बिहार की शिक्षा तो संगठित भ्रष्टाचारियों और माफियाओं के चंगुल में इतनी कैद होती गई कि आज बर्बाद होकर रह गई। स्कूली शिक्षा की अधिक जानकारी मुझे नहीं लेकिन विश्वविद्यालयों का हाल थोड़ा बहुत मालूम होता रहता है। अक्सर लगता है कि विश्वविद्यालयों के मामले में नीतीश जी की सरकार, उनकी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नहीं "अनलिमिटेड टॉलरेंस" की नीति पर चलती हैं। मतलब, कि जो लूट संस्कृति में शामिल रहे उनमें कोई डर, भय, लाज, शर्म, नैतिकता आदि नजर ही नहीं आई।
बिहार के विश्वविद्यालयों में आत्मा नहीं रही, सिर्फ ढांचा बचा है। इतना भ्रष्टाचार जहां पनप जाए, जहां न्यूनतम नैतिकता को भी त्याग देने वाले तत्वों का वर्चस्व बढ़ता जाए वहां न शैक्षणिक संस्कृति बची रह सकती है न शिक्षा की आत्मा।
बर्बादियों के इन्हीं भयमुक्त सौदागरों का कमाल है कि हाल में जारी भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की रैंकिंग में देश के 300 श्रेष्ठ कॉलेजों की सूची में बिहार का एक भी सरकारी कॉलेज नहीं है। 300 में एक भी नहीं। आबादी 14 करोड़। जीरो टॉलरेंस वाले नीतीश जी 20 वर्षों से बिहार पर काबिज हैं और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यही उनकी कमाई है।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि बिहार से रोजगार के लिए पलायन देश में सबसे अधिक है तो उच्च शिक्षा के लिए पलायन भी देश में सबसे अधिक है।
मेरा जेनरल नॉलेज कमजोर है तो मुझे यह समझ में ही नहीं आता कि कंपाउंडर, किरानियों, दारोगाओं, हवलदारों के लिए अगर विजिलेंस विभाग है तो बड़े राजनेताओं, बड़े सरकारी अधिकारियों, उच्च शिक्षा तंत्र पर काबिज बड़े पदधारियों के लिए कौन सा विभाग या कौन सी एजेंसी है।
तेजस्वी यादव के मामले में अगर नीतीश जी की आत्मा जाग उठी थी तो आज उनके जिन सहयोगियों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं उनसे भी जवाब मांगने होंगे।
आरोप लगाए जा रहे हैं कि नीतीश जी के अति दीर्घ कार्यकाल के इस दौर में, जब उनके स्वास्थ्य को लेकर कई शंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, राजनेताओं और अधिकारियों का कोई कॉकस सत्ता तंत्र पर हावी है। डिजिटल मीडिया में खास तौर पर ऐसी चर्चाएं अधिक सुनाई देती हैं। यह बिहार वासियों के लिए कोई सुखद चर्चा नहीं है।
जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। प्रशांत किशोर के आरोपों को यूं ही हवा में नहीं उड़ाया जा सकता है।
वे भाजपा की बी टीम हैं या नहीं, यह अनुसंधान का विषय हो सकता है, लेकिन जो मुद्दे वे उठा रहे हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
बिहार एक अभिशप्त राज्य है जो सार्वजनिक जीवन की गुणवत्ता के प्रत्येक मानकों पर देश की सबसे निचली पायदान पर है। देश का सबसे गरीब, सबसे पिछड़ा, गुणवत्ता हीन शैक्षणिक संरचना और अपर्याप्त जर्जर चिकित्सा संरचना वाला यह अभागा राज्य बेरोजगारी के मामले में देश में अव्वल है, रोजगार और शिक्षा के लिए पलायन के मामले में देश में अव्वल है, देश भर के गैंगस्टर्स को शूटर और कट्टा उपलब्ध करवाने के मामले में देश में अव्वल है, शिशु और मातृ कुपोषण के मामले में देश में अव्वल है। मतलब कि हर उस मामले में देश में सबसे अव्वल है जो निर्धनों के जीवन की चुनौतियों को बढ़ाते हों।
इस राज्य में अगर भाजपा की बी टीम होने का आरोप झेल रहे प्रशांत किशोर रोजगार, पलायन, शिक्षा, भ्रष्टाचार आदि के जरूरी मामले उठा रहे हैं तो उनके इन प्रयासों की सराहना होनी चाहिए और कांग्रेस को भी ऐसी कोई बी टीम उतारनी चाहिए जो बिहार के जरूरी मुद्दे उठाए और कांग्रेसियों की ही बखिया उधेड़ने लगे।
(लेखक पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
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